छुप के चलते हैं दूसरों की परछाईओं मे..
चुपके से झाँक लेते हैं बादलों की ओट से..
बारिश की बूँदों को महसूस करते हैं...
फिर सो जाते हैं चादर ओढ़ के...
सूरज की किरणों से आँखें खिल उठती हैं..
रोशनी से मन के पन्नो मे उजाला करते हैं...
फिर कुछ लिख पड़ते हैं उन पन्नों पे..
कभी लिखते कभी मिटाते;पीछे और आगे को पीछे छोड़ के...
घर से निकल कर सड़कों पे घूमते हैं..
राहों का मिलना बिछड़ना देखा करते हैं...
भीड़ को बिखरता सिमटता देखते हैं..
किस भीड़ मे मिलें सोचा करते हैं मोड़ पे...
टेढ़ी सीधी राहों मे...
उलझी सुलझी बातों मे..
बनती बिगड़ती तकदीर है कहीं चौकन्नी खड़ी..
घटना बढ़ना खेल है;ज़िंदगी नही ज़ीनी जोड़ तोड़ के...
कुछ बातें समझ के भी समझ नही आतीं...
कुछ बातों का ना समझना ही ठीक है..
बस एक राह चुननी है..
और चलते जाना है;रुकना नही है किसी मोड़ पे..
Amrit Raj
PS:Confusion is not a hindrance..Its jst keeps a check on life...Moving forward depends on how you check in and check out..
19.11.2011
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