Friday, August 30, 2013

परस्ती वतन से

फलक और ज़मीन है तुम्हारी क़लम से..
वो पाने का जज़्बा- परस्ती वतन से...
भुला तुम ना देना सरफरोशों की कसमें..
ये मौज़ों की दुनिया और हस्ती वतन से....


पैरों मे बेड़ी जो डाली है कल से..
वो लाली गगन की है काली कलम से...
जो तुम खा रहे थे अपने कौमों की कसमें..
शहीदों की क़ब्रों पे मातम है तब से..


जनाज़े उठाए तुमने अपनी रसम से..
है मातम मे धरती अपने बेटों के गम से...
वो ताक़त की होली इबादत के रंग में...
धुँधली सी आँखों मे आँसू है तब से..


आज़ इंक़लाब की तुमने छेड़ी नज़म है..
यह गैरों की दुनिया मे फिर किसको गम है..
घुसे थे घरों मे अब निकले हो घर से..
वो मंदिर मे सजदे वो मस्जिद के घंटे..


चलो आज फिर तुम खालो ये कसमें..
वतन की परस्ती तुम्हारे है बस में..
उठो -जाग जाओ,देखो धरती पुकारे..
ये कौमों के चोलो को कर दो किनारे...


फलक और ज़मीन है तुम्हारी कलम से..
वो पाने का जज़्बा- परस्ती वतन से...
भुला तुम ना देना सरफरोशों की कसमें.
ये मौज़ों की दुनिया और हस्ती वतन से....  

14.08.2012

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