Monday, January 27, 2014

तारीफ़

तारीफ़ 
Context :It all started from a feeling of not able to compliment people.My father has been doing that for long.And I endorsed the lineage with full virtue.I can still remember those dining table conversations where my mom would ask "kaisa bana hai" and my father would say without an tweaks "Theek hai".It used to kill everything.Its not that we people don't like complimenting.Its just that our ways are different.While I prefer a witty sense of complimenting or may be a compliment in disguise or a hyperbole.Sometimes even my criticism is a compliment.And I must tell you this goes very badly with girls.Experience se bol rha hun.
थोड़ी हिचकिचाहट है 
लफ्ज़ टटोल रहा हूँ 
थोडा सब्र तो करो 
पूरा दिल ही खोल रहा हूँ 

झुकी नज़रों से देखा है 
बस अब रूह घोल रहा हूँ 
ऐ वक़्त ज़रा ठहर जाओ 
खालिस  सच बोल रहा हूँ 

मुस्कुराती शाम की हंसी में 
सुहानी रात का ताला है 
सपने दरवाज़े पे खड़े हैं 
बस चाबी का उजाला है 

तुम्हारी तारीफों के पुल को 
कुछ दरख्तों का इंतज़ार है 
तुम्हारे ज़ुल्फ़ों के घने जंगल में 
अब भी बहार ही बहार है 

तुम्हारी शक्शियत कि शान में 
दो शेर बोल रहा हूँ 
पर वो कुछ भारी से हैं 
इसलिए अब भी तोल रहा हूँ 

1-खुली खिड़की है बारिश में 
   हवा के झोंकों का आग़ाज़ है 
   वो बूँदें चेहरे पे पड़तीं 
   और दिल में दस्तक की आवाज़ है 

2 -बरस कर देखती हो तुम 
    मैं कितने दिन से बादल हूँ 
    बरसना भूल जाता हूँ 
    तेरी आँखों का काजल हूँ 

कि झिलमिल रोशनी से मैं 
ये कितनी बार हूँ कहता 
अगर तुम चांदनी होती 
तो मैं दरिया सा ना बहता 

चलो अब बैठकर फिर से 
बहाने याद करता हूँ 
तुम्हें लफ़्ज़ों के पिंजड़े से 
मैं फिर आज़ाद करता हूँ


I remember this Nusrat Fateh Ali Khaan Song right now.Aafreen Aafreen.Husn-e-jaana ki taarif Mumkin nahi


ख़ालिस:pure
दरख़्त:  wood
बरस : rain,tears ,anger
आग़ाज़ :start 

25.01.2014

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