Tuesday, April 1, 2014

सीख

PS:written in context of imbibing things from nature in your life,the traveller you want to be,the nomadic life you want to lead,the things you want to learn from the surroundings

काले घनेरे बादलों से
काजल चुराना सीख लूँ
थम के बरसना ना सही
आँसू बहाना सीख लूँ


चाँदनी सी रात में
टिमटिमाना सीख लूँ
चाँद के चकोर में
मुँह छुपाना सीख लूँ

तारों की फ़ौज़ में
गुम हो जाना सीख लूँ
खुद ही में खो जाउन
पर रस्ता दिखाना सीख लूँ

नदियों की मौज़ में
बहते जाना सीख लूँ
समंदर की गोद में
खुद को भुलाना सीख लूँ

पेड़ों की शाख पर
घर बनाना सीख लूँ
तिनको का आशियाँ हो 
और चहचाहना सीख लूँ

कौओं के बीच में
कोयल हो जाना सीख लूँ
दूसरों के घोंसले में
घर बनाना सीख लूँ

हंसों के झुंड में
जोड़ा बनाना सीख लूँ
मौसम की बदली में
सरहद पार जाना सीख लूँ

पतझड़ के पेड़ों सा
बेआबरू हो जाना सीख लूँ
बहारों के इंतज़ार में
दिन बिताना सीख लूँ

सड़कों की आँखमिचोली में
नज़रें चुराना सीख लूँ
खुद ही रस्ता भूल जाउन
फिर मंज़िल बनाना सीख लूँ

पहाड़ों के बीच में
झरने बहाना सीख लूँ
किरणों की रोशनी में
झिलमिलाना सीख लूँ

मटमैले झोपड़ो में
चूल्‍हे जलाना सीख लूँ
मुफ़लिसी की आग में
रोटी बनाना सीख लूँ

तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में
ठहर जाना सीख लूँ
जितना है उतना काफ़ी है
मन को मनाना सीख लूँ

मन के मंज़ीरों से
धुन बजाना सीख लूँ
ज़िंदगी के फ़लसफ़े का 
हर फसाना सीख लूँ


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