PS:It all started from a Gulzar song from Izazat;Mera kuch Saaman tumhare paas pada hai...The line was"116 chaand ki raatein aur tumhare kaandhe ka til".It was shuttling in my mind.I wrote few random lines to start with.But the main poem happened on a train journey to Ranchi.
{चालीस चोर
हज़ार की रिश्वत
एक ना माने
तीन इकके
पाँच पांडव
सौ कौरव
एक जीत
सात सुर
नव रस
दो प्रेमी
एक गीत }
लाखॊं लोग
हज़ारोँ ख्वाहिशें
हज़ारोँ ख्वाहिशें
एक चुटकी नमक
दो मुट्ठी गुंजाइशें
चार दिन की चाँदनी
एक और एक ग्यारह
दो और दो पाँच
चार मुस्कुराते मौसम
आधा अधूरा चाँद
दस तरह की बातें
आधा पेट खाना
एक ग्लास पानी
दो घूँट बेबसी
गालोँ पे दो भंवर
दो होठोँ की खिड़की
मुहाने पे एक तिल
सवा रुपैया चढ़ावा
हज़ार फूलो की चादर
एक पीर की मज़ार
खोली नंबर एक सौ आठ
एक आना खुशी
दो पैसा उदासी
एक जलती सिगरेट
चार दोस्त साथ में
दो बातें हो जाए
लाखॊं की कमाई
आठ पर्सेंट इंटेरेस्ट
दस हज़ार की EMI
एक कटोरी ज़िंदगी
चार सीटियाँ कूकर क़ी
एक रेसिपी मसालेदार
मेरा एक सवाल
एक मैं;एक चौराहा
अनगिनत मेरे ख्वाब
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