बिस्कुट के कड़ कड़ मे..
हवा के सर सर मे..
ठंड की थर थर मे...
नाक की सुड़ सुड़ मे...
कुत्ते की गुर गुर मे..
मिक्स्चर की चुर चुर मे...
दिल की धक धक मे..
दीए की भक भक मे..
चाय की सुड़क सुड़क मे..
पानी की डूबक डूबक मे..
रोने के सुबक सुबक मे...
बिजली के कड़ कड़ मे..
पेपर के फड़ फड़ मे..
बादलों के घड़ घड़ मे..
बर्तन की ठन ठन मे..
सिक्कों की खन खन मे..
झींगुर के झन झन मे..
ए रात तू सोती कैसे है?
PS: An alliterated sattire/description of the sleepless long nights in Delhi
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