Wednesday, December 4, 2013

कुर्सी

कुर्सी
"हर बात नयी",ये बात कही,
पर फिर से वही कहानी है;
वही दो टके की जनता है,
वही जीत की राह बनानी है|

हर वोट यहाँ पेर प्यारा है,
उनका बस यही सहारा है;
घर छूट गया -कोई बात नहीं
बस कुर्सी का ही नारा है|

कुर्सी का बल ही तो बल है,
बत्ती की चकाचौंध ही संबल है
तेरे ही दर पे ऐ जनता ,
वोटों का मीठा सा फल है|

तू फल की चिंता छोड़ यहाँ,
बस अपना दरश दिखाना है;
वो ऐसा जादू छेड़ेंगे ,
हर वोट उन्हीं को जाना है|

मन में तेरे है बात कई,
पर बातों पर अधिकार नहीं;
सब वोट रिझा कर पा लेंगे,
बस और कोई सरोकार नहीं|

कुर्सी पर जैसे ही बैठे;
रहता उनको कुछ याद नहीं
हर भूले बिसरे गीतों की,
सुनता कोई फरियाद नहीं|


कुर्सी का सुख कुछ ऐसा है,
इसके दम पे ही पैसा है|
वो वोट तो बस एक चंदा था,
ये ही तो असली धंधा है|

उठ जाग ,की क्यूँ तू सोता है?
हर दुख को यूँ ही ढोता है;
आवाज़ उठा;बस बटन दबा;
फिर देखना क्या क्या होता है||

AMRIT RAJ

No comments:

Post a Comment