आपाधापी में कशमकश में ,कभी इस रस में कभी उस रस में
जीवन के २ ४ बरस में, अब भी हूँ मैं असमंजस में
आनंद में अचरज में ,कभी सपने में कभी हरकत में
ख़ामोशी में फुर्सत में ,अब भी हूँ मैं असमंजस में
दुनियादारी में दुकानदारी में;कभी मन से कभी लाचारी में
रणभूमि में सर्कस में , अब भी हूँ मैं असमंजस में
अभिनय में आचरण में ,कभी ह्रदय से कभी अहम् में
मधुर में कर्कश में,अब भी हूँ मैं असमंजस में
आखेट में विचरण में ,कभी थल पर कभी गगन में
शिथिलता में करतब में,अब भी हूँ मैं असमंजस में
क्रोध में स्मरण में,कभी सोचकर कभी मगन में
नास्तिकता में मजहब में,अब भी हूँ मैं असमंजस में
जीवन के २ ४ बरस में, अब भी हूँ मैं असमंजस में
आनंद में अचरज में ,कभी सपने में कभी हरकत में
ख़ामोशी में फुर्सत में ,अब भी हूँ मैं असमंजस में
दुनियादारी में दुकानदारी में;कभी मन से कभी लाचारी में
रणभूमि में सर्कस में , अब भी हूँ मैं असमंजस में
अभिनय में आचरण में ,कभी ह्रदय से कभी अहम् में
मधुर में कर्कश में,अब भी हूँ मैं असमंजस में
आखेट में विचरण में ,कभी थल पर कभी गगन में
शिथिलता में करतब में,अब भी हूँ मैं असमंजस में
क्रोध में स्मरण में,कभी सोचकर कभी मगन में
नास्तिकता में मजहब में,अब भी हूँ मैं असमंजस में